Sunday 28 April 2019

ख़ूबसूरत..अदाकारी भी!!


'मुग़ल-ए-आज़म' (१९६०) के "जब प्यार किया तो डरना क्या.." गाने में ख़ूबसूरत अदाकारा..मधुबाला!

मुझे हमेशा ऐसा लगता हैं की जो ख़ूबसूरत अदाकारा हमारे सिनेमा के परदे पर आयी, उनकी ज्यादातर ख़ूबसूरती की ही तारीफ़ हुई..और उनकी अच्छी अदाकारी की ओर दर्शकों ने ग़ौर करना रह गया!
इसमें मधुबाला जी का ज़िक्र ही काफ़ी हैं..और वह भी के. आसिफ जी की शानदार फ़िल्म 'मुग़ल-ए-आज़म' (१९६०) में उनकी अदाकारी की मिसाल देकर!

अभिनय क्षेत्र के दो उत्तुंग व्यक्तित्व..पृथ्वीराज कपूर इसमें बादशाह अकबर हुए थे और दिलीप कुमार शहज़ादा सलीम!..इनके सामने अनारकली की व्यक्तिरेखा साकार करना यह मधुबाला के लिए सिर्फ अपनी आस्मानी ख़ूबसूरती पेश करना नहीं था; बल्कि उन दोनों के सामने हर एक लम्हा अभिनय की पूरी क्षमता से निभाना था!

'तराना' (१९५१) के प्रेम प्रसंग में मधुबाला और दिलीप कुमार!
उसमें सलीम-अनारकली के प्रेम प्रसंग स्वाभाविक होने ही थे; क्योंकि १९५० के दशक में 'तराना', 'संगदिल' और 'अमर' जैसी रूमानी फिल्मों से दिलीप कुमार-मधुबाला का प्यार असल में भी रंग लाने लगा था! लेकिन यहाँ इम्तिहान था..एक तरफ़ प्यार और दूसरी तरफ हुक़ूमत के बीच उसको कई जज़्बातों को जीना था.. और उसने वह तन्मयता से साकार किएँ।

आप इस फ़िल्म का मशहूर गाना "जब प्यार किया तो डरना क्या.." ही ग़ौर से देखें! पहले मूल कृष्ण-धवल रही इस फ़िल्म में सिर्फ़ यही गाना रंगीन था..जो ख़ूबसुरत शीश महल में आर. डी. माथुर जी ने बख़ूबी फ़िल्माया था। शकील बदायुनी जी ने लिखे इस गीत को नौशाद जी के संगीत में लता मंगेशकर जी ने उसी अंदाज़ में गाया था! यह पृथ्वीराज कपूर और दिलीप कुमार के सामने मधुबाला की बेहतरीन अदाकारी दिखाता हैं..

इसके शुरुआत में..रंगीन महल में परदा सरकता हैं और अनारकली के लिबास में (पहली बार रंगीन) ख़ूबसूरत मधुबाला का दीदार होता हैं..इसमें उसकी नृत्य कुशलता झलकती हैं..फिर वह गाना पेश करने लगती हैं..तब सलीम हुए दिलीप कुमार की आँखें झुकती नज़र आती हैं; लेकिन आँखों में बग़ावत लिए वह बादशाह अकबर हुए पृथ्वीराज कपूर के सामने अपना अफ़साना रखती हैं..

"इंसान किसीसे दुनिया में एकबार मोहब्बत करता हैं..
इस दर्द को लेकर जीता हैं..इस दर्द को लेकर मरता हैं.."

और फिर एक हाथ सलीम दिलीपकुमार की ओर करके कहती है "जब प्यार किया तो.." और "डरना क्या.." के समय उसका दूसरा हाथ अकबर पृथ्वीराज कपूर की ओर होता हैं!

'मुग़ल-ए-आज़म' (१९६०) के "जब प्यार किया तो डरना क्या.." गाने में 
पृथ्वीराज कपूर और दिलीप कुमार के सामने मधुबाला की बेहतरीन अदाकारी!
इस के बाद..अकबर पृथ्वीराज कपूर के सामने जाकर अनारकली मधुबाला बेफ़िक्र होकर कहती हैं..

"आज कहेंगे दिलका फ़साना
जान भी लेंगे चाहे ज़माना." 

तब सलीम दिलीप कुमार पूरी उम्मीद से उसकी तरफ़ देखता हैं!

अनारकली मधुबाला इसके बाद सलीम दिलीप कुमार के पास जाती हैं और उसे देखकर कहती हैं.. 

"उनकी तमन्ना दिल में रहेगी..
शमा इसी महेफ़िल में रहेगी.."
'मुग़ल-ए-आज़म' (१९६०) के "जब प्यार किया तो डरना क्या.." 
गाने में दिलीप कुमार के सामने मधुबाला की अदाकारी!
तब सलीम दिलीप कुमार का चेहरा उस प्यार से कुछ खिला दिखायी देता हैं..
फिर उसके पास से ख़ंजर लेकर अनारकली मधुबाला कहती हैं.. 

"इश्क़ में जीना..इश्क़ में मरना
और हमें अब करना क्या..."

फिर वह अकबर पृथ्वीराज कपूर को ख़ंजर लाकर देती हैं..तब गुस्से से उनकी आँखे लाल होती हैं।

उसपर अनारकली मधुबाला के शब्द गूँजतें हैं..
"छुपना सकेगा इश्क़ हमारा..
चारों तरफ़ हैं उनका नज़ारा.."

'मुग़ल-ए-आज़म' (१९६०) के "जब प्यार किया तो डरना क्या.." 
गाने में बग़ावती तेवर में मधुबाला की अदाकारी!
तब महल के सभी शीशों में उसकी तस्वीर दिखती हैं.. जिसे सलीम दिलीप कुमार आँखे ऊपर करके देखता हैं।

बाद में दोनों हाथ ऊपर उठाकर अनारकली मधुबाला कहती हैं.. 

"परदा नहीं जब कोई खुदा से
बंदो से परदा करना क्या.."

तब उसका इशारा अकबर पृथ्वीराज कपूर की तरफ़ होता हैं!



('यहाँ शकील जी को अल्फ़ाज़ बदलने पड़े थे ताकि बादशाह की बेअदबी ना हो' यह नौशाद जी ने ही एक जगह बताया था!)

इस वक़्त अकबर पृथ्वीराज कपूर की आँखे झुकती हैं..और सलीम दिलीप कुमार अर्थपूर्ण नज़र से दोनों की ओर देखता हैं!

इस पूरे गीत-दृश्य में मधुबाला ख़ूबसूरती के साथ लाजवाब अदाकारी से भी छायी नज़र आती हैं।

अपने भारतीय सिनेमा की मेरी सबसे पसंदीदा फ़िल्मों में से 'मुग़ल-ए-आज़म' (१९६०) एक हैं..और ऐसे कभी न भूलनेवालें दृश्यं हैं!!

- मनोज कुलकर्णी
   [चित्रसृष्टी]

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