चमन यूँ ही नहीं ऐसा खिल उठता..
दीदावर का योगदान उसमें है रहता!
- मनोज 'मानस रूमानी'
ऐसे ही, हमारे प्रोफेसर किरण ठाकूर जी.. उनका जाना बेहद दुखद है!
हमारे 'डिपार्टमेंट ऑफ़ कम्युनिकेशन एंड जर्नलिज़म' के एल्युमिनाई मीट पर उनका मिलना और आस्था से बातें करना याद आ रहा है!
उन्हें श्रद्धांजलि!!
- मनोज कुलकर्णी
रफ़ी-ए-हिन्दोस्ताँ!
मीठी आवाज़ के शहेनशाह थे वो
जहाँ-ए-तरन्नुम से पधारे थे वो!
फ़न के सही दीदावर थे वो
बहार-ए-मौसीक़ी बने थे वो!
वतन को नायाब तोहफ़ा थे वो
आवाज़ का कोहिनूर ही थे वो!
हमारे जज़्बात से वाबस्ता थे वो
आसमाँ से आए फ़रिश्ता थे वो!
- मनोज 'मानस रूमानी'
(सुरों के शहेनशाह और मीठी आवाज़ के मालिक हमारे अज़ीज़ मोहम्मद रफ़ी साहब का आज १०० वा जनमदिन और जन्मशताब्दी!)
उनपर मैंने बहुत लिखा हैं! मेरे 'चित्रसृष्टी' संगीत विशेषांक में उनपर मेरा खास लेख था! उन्हें विनम्र सुमनांजलि!)
- मनोज कुलकर्णी
मेरे अज़ीज़ शायर तथा गीतकार मरहूम मजरूह सुल्तानपुरी जी को मेरे अज़ीज़ गायक मोहम्मद रफ़ी जी के नाम का जीवन गौरव पुरस्कार प्रदान किया जाएगा इस ख़बर से ख़ुशी हुई!
इन दोनों पर मैंने बहुत लिखा। इस समय रफ़ी जी ने गाए मजरूह जी के गीत मेरे मन में गूँज रहें हैं। "चाहूँगा मैं तुझे.." जैसे 'दोस्ती' पर हो, या "अब क्या मिसाल दूँ मैं तुम्हारे शबाब की.." जैसे रूमानी!
और याद आ रहा हैं एक मुशायरे के बाद मजरूह साहब को मिलने पर उन्होंने मेरे सिर पर रखा हाथ!
इन दोनों को सलाम!!
- मनोज कुलकर्णी (मानस रूमानी)