Wednesday, 29 April 2020

इरफ़ान ख़ान की आख़री फ़िल्म!

'अंग्रेजी मीडियम' फ़िल्म में राधिका मदान और इरफ़ान ख़ान!
बिमारी की वजह से लंबे समय सिनेमा से दूर रहे बेहतरीन कलाकार इरफ़ान ख़ान की 'अंग्रेजी मीडियम' यह होमी अदजानिया निर्देशित फिल्म हाल ही में डिजिटल प्लेटफॉर्म पर रिलीज हुई थी।

'अंग्रेजी मीडियम' फ़िल्म में इरफ़ान ख़ान और राधिका मदान की केमिस्ट्री!
हालांकि इरफ़ान की 'हिंदी मीडियम' के बाद आयी यह सीक्वल पटकथा में कुछ अविश्वसनीय तथ्यों की वजहसे कमजोर लगी! लेकिन उन्होंने इसमें सिंगल फादर की भूमिका बख़ूबी निभायी और राधिका मदान ने उनकी आज की जनरेशन की लड़की स्वाभाविकता से साकार की।

इन दोनों की लाजवाब केमिस्ट्री के लिए यह फिल्म देखें!

- मनोज कुलकर्णी
इरफ़ान..आप नाम की तरह इल्म और तहज़ीब की मिसाल थे!

इस नासमझ अजीब माहौल में..इंसानियत की हिफ़ाज़त के लिए आपकी जरूरत थी!


आपको अलविदा कैसे करू?

मेरे अज़ीज अदाकार!!


- मनोज कुलकर्णी

Tuesday, 28 April 2020

"रमजान..इबादत का महिना.." 

यह गानेवाले हमारे अज़ीज़ गायक मोहम्मद रफ़ी साहब जब अपने परिवार के साथ हज करने गएं थे..
तब की यह दुर्लभ तस्वीरें!

अस्सलाम वालेकुम!!

- मनोज कुलकर्णी

Monday, 27 April 2020

महान शास्त्रीय गायक! 

हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के दिग्गज..उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली ख़ां गाते हुए!

हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के दिग्गज उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली ख़ां को यह जहाँ छोड़कर अब पचास से भी ज्यादा साल हो गएँ!

"प्रेम जोगन बन के.." 
इस बड़े ग़ुलाम अली ख़ां साहब की सुरीली तान पर 
फिल्म 'मुग़ल-ए-आज़म' (१९६०) में प्यार का इज़हार 
करतें सलीम-अनारकली (दिलीपकुमार-मधुबाला).
लेकिन अब भी के. असिफ की क्लासिक फिल्म 'मुग़ल-ए-आज़म' (१९६०) में उन्होंने गायी "प्रेम जोगन बन के.." की तान रूमानी दिल के तार छेड़ लेती हैं! उसमें सलीम-अनारकली (दिलीपकुमार-मधुबाला) के प्यार को अभिजात तरीके से दर्शाते प्रसंग में पार्श्वभूमी पर तानसेन के लिए गाने को ख़ां साहब को आसिफजी और संगीतकार नौशादजी ने मुश्किल से मनाया था।

शागिर्द रही मशहूर गायिका नूरजहाँ के साथ  
पाकिस्तान में बड़े ग़ुलाम अली ख़ां साहब!
संगीतज्ञों के परिवार में बड़े गुलाम अली खां का आरंभ सारंगी वादक के रूप में हुआ!..बाद में वे पटियाला घराने की गायकी में उभर आए। १९१९ में 'लाहौर संगीत सम्मेलन' में बड़े ग़ुलाम अली खां पहली बार गाएं।..और फिर पूरे हिंदुस्तान में मशहूर हुए! सुरीली लोचदार आवाज़ और अभिनव शैली के बूते उन्होंने ठुमरी को नये अंदाज में पेश किया! लोकसंगीत की मिठास भी उनके आवाज में थी। उन्होंने गाये "राधेश्याम बोल.." भजन सुनकर महात्मा गांधी प्रभावित हुए थे!

हिंदुस्तान में मशहूर गायिका लता मंगेशकर के साथ 
एक संगीत कार्यक्रम में बड़े ग़ुलाम अली ख़ां साहब!
१९४७ में देश के विभाजन के बाद बड़े ग़ुलाम अली खां पाकिस्तान में उनके गांव क़सूर चले गएँ। वहां उन्होंने संगीत भी सिखाया..ग़ज़ल गायक ग़ुलाम अली उनकेही शागिर्द! बाद में १९५७ में खां साहब हिंदुस्तान लौट आए..सदा के लिए!

यहाँ १९६२ में उन्हें "पद्मभूषण" से सम्मानित किया गया। 

२३ अप्रैल, १९६८ को उनका निधन हुआ।

उन्हें यह सुमनांजली!

- मनोज कुलकर्णी.

Tuesday, 14 April 2020



"अपनी कहानी छोड़ जा.."
'दो भीगा ज़मीन' (१९५३) फ़िल्मके उस गाने के दृश्य में बलराज साहनी!
"अपनी कहानी छोड़ जा..
कुछ तो निशानी छोड़ जा!
कौन कहे इस ओर..
तू फिर आए न आए..!" 

अपने भारतीय सिनेमाके महान कलाकारों में से बलराज साहनी की प्रखर वास्तववादी भूमिका के 'दो भीगा ज़मीन' (१९५३) इस फ़िल्म में उन्हीने साकार किया हुआ यह गाना। कल उनके स्मृतिदिन पर याद आया। लगभग चार तप हो गएँ हैं..  
उन्हें यह जहाँ छोड़कर!

आजके हालातों के मद्देनज़र इसे देख सकतें हैं ऐसी समकालिनता अपनी चित्रकृति में रखनेवाले इसके दिग्गज फ़िल्मकार बिमल रॉय और ऐसा यथार्थवाद अपने काव्यकृति में रखनेवाले शैलेन्द्र..इत्तफ़ाक़ ऐसा की यह दोनों एक ही साल याने १९६६ में यह जहाँ छोड़ गएँ!

डी सिका की इतालियन फिल्म 'बाइसिकल थीव्ज़' (१९४८) का मूल दृश्य!
हालांकि अपने फ़िल्मकार बिमल रॉय पर 'इतालियन नव-वास्तववाद' का प्रभाव था! इसी वजह से उसके अग्रशील विट्टोरिओ डी सिका की इसी जॉनर की विश्वविख्यात 'बाइसिकल थीव्ज़' (१९४८) फिल्म से प्रेरित 'दो भीगा ज़मीन' का दृश्यांकन 
हुआ था! 

वैसे फ़िल्म 'दो भीगा ज़मीन' अपने महान साहित्यकार रबीन्द्रनाथ टैगोर की काव्य - कृति 'दो बीघा जोमी' से प्रेरित थी। उसपर (इसके संगीतकार) सलिल चौधरी ने कथा लिखी थी और.. हृषिकेश मुख़र्जी ने पटकथा लिखी थी जो तब सहायक निर्देशक भी थे! 

बिमल रॉय के 'दो भीगा ज़मीन' (१९५३) का फिल्म 'बाइसिकल थीव्ज़' (१९४८) जैसा दृश्य!
अपना ऋण चुका कर.. ज़मीन को बचाने के लिएं पैसे कमाने गरीब किसान गाँव से कलकत्ता आता हैं.. तब इस महानगर में रिक्शा चलाने जैसे काम करतें उसे कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता हैं ऐसी इसकी कहानी थी। इसके ज़रिये बिमलदा ने प्रखर वास्तव परदे पर लाया था।..और बलराज साहनी ने अपनी जान इसके प्रमुख किरदारमे डालकर बड़ी स्वाभाविकता से वह साकार किया था!

इस फ़िल्मने अपने हिंदी सिनेमामें यथार्थवादी दौर शुरू किया!..इसे राष्ट्रीय और आंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया। साथ ही 'कांस' और 'कार्लोवी वैरी' जैसे प्रतिष्ठित फिल्म समारोह में इसने पुरस्कार भी जीतें!

ऐसे महान कलाकारों को सलाम!!

- मनोज कुलकर्णी
बिमल रॉय की फ़िल्म 'सुजाता' (१९५९) में सुनील दत्त और नूतन!
"जलतें हैं जिसके लिए..
तेरी आँखों के दियें.."

तलत की दिल छू लेनेवाली आवाज़ में मजरूहजी की यह ग़ज़ल आज याद आयी!

जो है 'सुजाता' इस नाम ही सबकुछ बयां करनेवाली अभिजात चित्रकृति से!


१९५९ में अपने जानेमाने निर्देशक बिमल रॉय ने बनायी यह फ़िल्म जाती व्यवस्थापर संवेदनशीलता से भाष्य कर गयी।

सधन उची जात का परिवार एक गरीब दलित लड़की को गोद लेता हैं और..बाद में उसी परिवार के लड़के का दिल उसपर आता है। सुबोध घोष ने लिखी इस कहानी पर नबेंदु घोष ने इसकी पटकथा लिखी थी।

इसमें अपनी बेहतरिन अभिनेत्री नूतन ने वह शीर्षक भूमिका बड़ी ही स्वाभाविकता से हृदय साकार की और अपने संवेदशील अभिनय से सुनील दत्त ने उसे अच्छा साथ दिया।

इस फिल्म को काफी सराहना मिली और अनेक पुरस्कारों के साथ राष्ट्रीय सम्मान भी प्राप्त हुआ!

हिमांशु राय की फिल्म 'अछूत कन्या' (१९३६) में देविका रानी और अशोक कुमार!
आज के दिन मुझे इसी विषय को उजागर करने - वाली दूसरी क्लासिक फिल्म याद आयी.. 
वह है 'बॉम्बे टॉकीज' की.. 'अछूत कन्या'!

इसके मालिक हिमांशु राय ने १९३६ में इस फिल्मका निर्माण किया था। इसकी कथा निरंजन पाल ने लिखी थी और फ्रैंज ओस्टेन ने इसे निर्देशित किया था।

इसमें ब्राह्मण युवक का किरदार अशोक कुमार ने किया था और दलित लड़की की शीर्षक भूमिका निभायी थी (हिमांशुजी की पत्नी) देविका रानी ने! इन दोनों ने खुद गाकर साकार किया..
"मै बन की चिड़ियाँ बन के बन बन बोलूँ रे.." गाना आज भी नज़रों के सामने हैं!

अपने भारतीय सिनेमा की इतिहास में ये दो मानदंड कही जानेवाली फ़िल्में!
इसमें और एक समानता थी की स्त्री किरदार का ही उपेक्षित भूमिकाओं के लिए चुना जाना। इससे शायद अनकही और एक वास्तवता सामने लानी होंगी!

ख़ैर, इन सामाजिक चित्रकृतियों को यह आदरांजली!!

- मनोज कुलकर्णी

Saturday, 11 April 2020

"रिम झिम गिरे सावन..
सुलग सुलग जाए मन.."


संजोग ऐसा की अभी पुणे में बारिश आयी और..सामने टीवी पर 'मस्ती-म्यूजिक' चैनलपर मेरा यह पसंदीदा गाना आया!

बासु चैटर्जी की फिल्म - 'मंज़िल' (१९७९) का योगेश जी ने लिखा यह गाना आर. डी. बर्मन के संगीत में उस भावनाओं के साथ लता मंगेशकर जी ने गाया हैं!
परदे पर अमिताभ बच्चन और मौशमी चैटर्जी ने बम्बई के भीगे रूमानी माहौल में इसे एन्जॉय किया हैं!

देखकर मेरा मन बम्बई के भीगे तेज़ रास्तों से उसी रूमानियत में चर्चगेट होकर नरिमन पॉइन्ट पर गया और याद आया वह लुत्फ़ उठाना!

- मनोज कुलकर्णी

Monday, 6 April 2020

दिये की रोशनी में पवित्र प्यार!


बिमल रॉय की क्लासिक फ़िल्म 'देवदास' (१९५५) में सुचित्रा सेन और दिलीप कुमार!
सालों बाद कलकत्ता से उच्च विद्या विभूषित होकर देवदास जब गाँव लौटता हैं..तो पहले अपने घर नहीं जाता, बल्कि अपनी बचपन की माशुका पारो को मिलने उसके घर जाता हैं!..तब उसकी आहट से शरमा कर ऊपर छुपी पारो को देवदास दिये की रोशनी में देखता हैं!

अपने दिग्गज फ़िल्मकार बिमल रॉय की क्लासिक 'देवदास' (१९५५) में बेहतरीन कलाकार दिलीप कुमार और सुचित्रा सेन पर चित्रित यह प्रसंग पवित्र तथा उत्कट प्यार का अनोखा अहसास देता हैं!

शरतचंद्र चट्टोपाध्याय की इस अमर प्रेमकथा पर नबेंदु घोष ने लिखे स्क्रीनप्ले के अनुसार सिनेमैटोग्राफर कमल बोस ने यह कल्पकता से फिल्माया हैं!

सुचित्रा सेन जी के जनमदिन पर..अपने भारतीय सिनेमा से मेरा यह एक और पसंदीदा प्रेमदृश्य आज याद आया!

- मनोज कुलकर्णी

Saturday, 4 April 2020

९ आकडे की अंधःश्रद्धा/अंधःकार में ये कौन से आशा के दीप जलाएंगे ?

Friday, 3 April 2020

नमस्कार/आदाब!!

मुझे यह नमूद करते हुए ख़ुशी होती हैं की, मेरे इस हिंदी ब्लॉग..मनोज कुलकर्णी ('चित्रसृष्टी') पर मैंने अब तक मेरे २०० आर्टीकल्स प्रसिद्ध किएँ!

मेरे इन हिंदी लेखों में हमारे सिनेमा के कुछ यादगार दृश्यं के चलचित्रं भी होंगे!

शुभकामनाएँ!!

- मनोज कुलकर्णी

Thursday, 2 April 2020

दो मुल्कों के मान्यताप्राप्त साम्यवादी शायर!

अपने भारत के शायर साहिर लुधियानवी और पाकिस्तान के शायर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़!

वास्तवता से जुड़ी अपनी कलम से उर्दू शायरी के क्षेत्र में दुनियाभर में बड़ा नाम हासिल किए..पाकिस्तान के फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ और उनसे प्रभावित..अपने भारत के यथार्थवादी शायर साहिर लुधियानवी..इनकी एक समारोह की यह दुर्लभ तस्वीर!

"और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा.."


..यह शेर फ़ैज़ साहब ने लिखा था!

जिसका असर साहिर जी ने लिखी नज़्म पर ऐसा पड़ा..

"..हज़ारों ग़म हैं इस दुनिया में..अपने भी पराये भी..
मोहब्बत ही का ग़म तन्हा नहीं..हम क्या करें.. "

'इज्जत' (१९६८) फ़िल्म के "ये दिल तुम बिन कहीं लगता नही..हम क्या करें.." इस वह नज़्म को.. लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के संगीत में लता मंगेशकर और मोहम्मद रफ़ी ने गाया था! और परदे पर यह तनुजा और धर्मेंद्र पर चित्रित हुआ था!

इन दोनों पसंदीदा शायरों को सलाम!!

- मनोज कुलकर्णी

Wednesday, 1 April 2020

दो मुल्कों के जानेमाने शायर!


अपने भारत के साहिर लुधियानवी और पाकिस्तान के क़तील शिफ़ाई..इन दो दिग्गज उर्दू शायरों की (दस्तखतों के साथ) यह दुर्लभ तस्वीर!

"जब भी चाहें एक नई सूरत बना लेते हैं लोग
एक चेहरे पर कई चेहरे सजा लेते हैं लोग.."

..यह शेर क़तील शिफ़ाई जी का था!

जिसपर साहिर जी ने नज़्म लिखी थी..

"जब भी जी चाहे नई दुनिया बसा लेते हैं लोग
एक चेहरे पे कई चेहरे लगा लेते हैं लोग.."

यश चोपड़ा की मशहूर फ़िल्म 'दाग़' (१९७३) में यह लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के संगीत में लता मंगेशकर जी ने गायी थी और परदे पर शर्मिला टैगोर ने साकार की थी!

- मनोज कुलकर्णी