चौकट छेदनेवाला प्रसंग!
'साहिब बीबी और ग़ुलाम' (१९६२) के आव्हानात्मक प्रसंग में रहमान और मीना कुमारी! |
"इन चार दीवारों में मेरा दम घुटता हैं.!"
हवेली की छोटी बहु ऐसा बार बार कहतें हुए भी उसका अय्याश पति अपनी बाहर की हरकतों से बाज नहीं आता।
उसे रोकने के लिए वह मनाती रहती हैं..तब तंग आकर पति कहता हैं "मुझे चाहिए वो करोगी?..
गा सकोगी मेरे सामने?..शराब पिओगी मेरे साथ?"
यह सुनकर परेशान उसकी हताश पत्नी वह भी करती हैं..और गाती हैं..
"ना जाओ सैंय्या छुडाके बैंया.."
'साहिब बीबी और ग़ुलाम' (१९६२) के "ना जाओ सैंय्या.." गाने में मीना कुमारी और रहमान |
यह आव्हानात्मक सीन!
बिमल मित्रा की कहानी.. 'साहिब बीबी और ग़ुलाम'
पर उसी नाम की दिग्गज फ़िल्मकार गुरुदत्त ने
१९६२ में निर्माण की
फ़िल्म का यह दृश्य..
जिसे पटकथा लेखक अब्रार अल्वी ने खुद ही निर्देशित किया था।
तब यह प्रसंग अपने पारंपरिक दर्शकों को कतई नहीं भाया और उन्होंने ताने दिए!
ताज्जुब की बात तो यह की 'ऑस्कर' के लिए यह फ़िल्म जब भेजी गयी तब अकादमी ने इस मुद्दे पर उसे नही स्वीकारा की '(भारतीय) संस्कृति में स्त्री का शराब पीना नाग़वार हैं!'
लेकिन जब यह फ़िल्म बाहर 'बर्लिन फ़िल्म फेस्टिवल' में पाश्चिमात्य दर्शकों ने देखी तो उन्हें इसमें कुछ भी अजीब नहीं लगा और "हमारे यहाँ तो रोज हज्बंड-वाइफ साथ में ड्रिंक लेते हैं!" ऐसी टिपण्णी भी की।
हालांकि इसको अपने यहाँ बुद्धिवादियों ने सराहा और बांग्ला समीक्षकों के और 'फ़िल्म फेअर' जैसे अवार्ड्स भी मिले।..उसमें निर्माता, निर्देशक के साथ मीना कुमारी को भी 'सर्वोत्कृष्ट अभिनेत्री' का पुरस्कार था ही! तथा 'सर्वोत्कृष्ट हिंदी सिनेमा' का राष्ट्रीय सम्मान भी इसे मिला!
- मनोज कुलकर्णी
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