मेरे इस ब्लॉग पर हमारे भारतीय तथा पूरे विश्व सिनेमा की गतिविधियों पर मैं हिंदी में लिख रहा हूँ! इसमें फ़िल्मी हस्तियों पर मेरे लेख तथा नई फिल्मों की समीक्षाएं भी शामिल है! - मनोज कुलकर्णी (पुणे).
Saturday 28 October 2023
Wednesday 11 October 2023
मुक़ाबला दो इमेजेस का!
'शक्ति' (१९८२) फ़िल्म में दिलीप कुमार और अमिताभ बच्चन! |
'दिलीप-अमिताभ: एक जनरेशन गैप' यह आर्टिकल मैंने लिखा था 'शक्ति' (१९८२) फ़िल्म में अपनी सदी के दो महानायक यूसुफ़ ख़ान याने दिलीप कुमार और अमिताभ बच्चन का परदे पर हुआ आमना-सामना देखकर! उसके जानेमाने निर्देशक रमेश सिप्पी जी की उम्र ७५+ हो गई हैं और आज अमिताभ जी की ८१ वी सालगिरह! तथा दिलीप साहब की जन्मशताब्दी हो गई। इस अवसर पर मुझे उसकी याद आयी, जिसे अब ४० साल हो गएँ हैं।
हालांकि, वह सिर्फ जनरेशन गैप ही नहीं थी, बल्कि अपने भारतीय सिनेमा के नायक को शोकग्रस्त से विद्रोही बनाने का बड़ा परिवर्तन था, जिसका विश्लेषण मैंने उसमें किया था। मेरे फ़िल्म पत्रकारिता के वे शुरूआती (महाविद्यालयीन) दिन थे और मुझपर पहले से अमिताभ की 'एंग्री यंग मैन' इमेज का प्रभाव था। लेकिन परिपक्व इंसान की सोच आती गयी तब महसूस हुआ की दिलीपकुमार के नायक जज़्बाती आम आदमी से काफी मिलते-जुलते थे!..और संवेदनशील होने की वजह से उनसे समरस हो सकता था! साथ ही दिलीप साहब की लाजवाब अभिनय क्षमता से मैं उनका प्रशंसक हुआ! मेरी इन दोनों दिग्गजों से मुलाकातें हुई और उनपर मैंने बहुत लिखा भी!
बहरहाल, समाज में होने वाले अन्याय-अत्याचारों का सामना करने की अमिताभ जी की संतप्त नायक की प्रतिमा निडर बनाने में स्फूर्तिदायी रही! उन्हें शुभकामनाएं!..और सिर्फ ट्रेजडी किंग ही नहीं, बल्कि अदाकारी के शहंशाह रहें यूसुफ़ साहब को सलाम!!
- मनोज कुलकर्णी
Tuesday 10 October 2023
Wednesday 4 October 2023
"लागी नाहीं छूटे.."
अपने अदाकारी के शहंशाह यूसुफ़ ख़ान याने की दिलीप कुमार जी को संगीत-गायन और निर्देशन में भी दिलचस्पी थी! उन्होंने अपनी स्वरसम्राज्ञी लता मंगेशकर जी के साथ नग़्मा भी गाया हैं!
लता मंगेशकर जी के साथ "लागी नाहीं छूटे." गाते दिलीप कुमार जी! |
उस 'मुसाफ़िर' की एक और विशेषता थी (जो कम लोग जानतें हैं) की इसमें दिलीप कुमार जी ने गाया भी! शैलेन्द्र जी ने लिखा "लागी नाहीं छूटे." यह दर्दभरा गीत सलिल चौधरी जी के संगीत में लता मंगेशकर जी के साथ उन्होंने बहुत ख़ूब गाया। हालांकि इससे पहले बिमलदा की फ़िल्म 'देवदास' (१९५५) में कोठे के फेमस सीन से पहले वे जो गुनगुनाएं थे वह रागदारी से कम न था। उनकी उसी आवाज़ की ख़ूबी को हृषिदा ने तराशा! बाद में उनकी आवाज़ में 'मुसाफ़िर' जैसा नग़्मा सुनने को नहीं मिला। उन्होंने अपना पूरा तवज्जोह अभिनय पर दिया!
ऐसी ही एक बात उनके निर्देशन और संगीत के बारे में हैं। "कोई सागर दिल को बहलाता नहीं.." यह शकील बदायुनी जी ने लिखा नग़्मा दिलीप कुमार जी ने 'दिल दिया दर्द लिया' (१९६६) में साकार किया। उन्होंने खुद यह फ़िल्म ए. आर. कारदार जी के साथ निर्देशित की थी! संगीत के अच्छे जानकार उन्होंने यह नग़्मा मशहूर मौसीकार नौशाद जी को खास 'राग कलावती' में संगीतबद्ध करने को कहा था! फिर उसी में मोहम्मद रफ़ी जी की दर्द भरी आवाज़ में वह आया और दिल को स्पर्श कर गया।
मैंने भी लगभग बीस साल पहले एक अनौपचारिक समारोह में यूसुफ़ साहब को शहनाई पर ताल देते हुए और गुनगुनातें रूबरू देखा-सुना हैं!
लता जी के ९४ वे जनमदिन पर यह "लागी नाहीं छूटे.." याद आया!!
दोनों को सुमनांजलि!!
- मनोज कुलकर्णी