विशेष लेख:
अष्टपैलू गीतकार..आनंद बख्शी!
जब से देखा मैंने तुझको..
मुझको शायरी आ गयी.."
ज़्यादातर (हम जैसे) रूमानी शायरों की यह वास्तविकता आनंद बख्शी जी ने अपने इस गीत में बयां कर दी थी!
'आरके' की फ़िल्म 'बॉबी' (१९७३) में यह गाना ऋषि कपूर बर्थ डे पार्टी में डिंपल की एक झलक देखकर गाता हैं।..संजोग से अब बख्शी जी के (९० वे) जनमदिन पर यह मुझे याद आया।
'हिमालय की गोद में' (१९६५) के "चाँद सी मेहबूबा हो मेरी.."
इस आनंद बख्शी के गाने में मनोज कुमार और माला सिन्हा! |
दरअसल वे गीत लेखन के साथ गायक बनने की तमन्ना लिए फ़िल्म इंडस्ट्री में आए थे; लेकिन गीतकार ही बन गए! १९५८ में भगवानदादा की भूमिका वाली, निसार बज़्मी के संगीत में फ़िल्म 'भला आदमी' के लिए उन्होंने गीत लिखें जिसमें था "धरती के लाल ना कर इतना मलाल.." जो १९५६ में उनकी आवाज़ में 'ऑल इंडिया रेडिओ' में पहली बार रिकॉर्ड हुआ था!
प्रतिभाशाली संगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल जी के साथ गीतकार आनंद बख्शी जी!
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जैसा की मुकेश जी ने गाया और मनोज कुमार-माला सिन्हा पर फ़िल्माया "चाँद सी मेहबूबा हो मेरी.." इसी दौरान यही संगीत-गीतकार की अगली हिट फ़िल्म आयी सूरज प्रकाश की 'जब जब फूल खिलें' जिसमें मोहम्मद रफ़ी की मीठी आवाज़ में "एक था ग़ुल और एक थी बुलबुल.." यह शशी कपूर और नंदा पर फ़िल्माया गाना प्रेमी दिलों को छू गया!
फ़िर उन्होंने लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल इस प्रतिभाशाली संगीतकार जोड़ी का 'आसरा' लिया! उनके लिए 'आये दिन बहार के' (१९६६), 'मिलन' (१९६७) और 'अंजाना' (१९६९) ऐसी रूमानी फ़िल्मों के गीत वे लिखते गएँ। इसमें "मस्त बहारों का मैं आशिक़.." गाकर जितेंद्र को जंपिंग जैक से हिट करने वाली 'फ़र्ज़' भी थी!
'आराधना' (१९६९) के "कोरा कागज़ था ये मन मेरा.." इस
आनंद बख्शी के गाने में राजेश खन्ना और शर्मिला टैगोर! |
गीतकार आनंद बख्शी अपनी गाने की तमन्ना पूरी करते हुए! |
उन्होंने अपनी सिनेमा की माइलस्टोन रमेश सिप्पी की ब्लॉकबस्टर 'शोले' (१९७५) में "चाँद सा कोई चेहरा.." इस क़व्वाली में मन्ना डे, किशोर कुमार और भुपिंदर के साथ अपनी आवाज़ भी दी थी; लेकिन फ़िल्म में वह शामिल न हो सकी!
'दिलवाले दुल्हनियाँ ले जाएंगे' (१९९५) के "तुझे देखा तो ये.."
इस आनंद बख्शी के गाने में काजोल और शाहरुख़ ख़ान!
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गीतकार आनंद बख्शीजी आजके संगीतकार ए.आर रहमान से चर्चा करते! |
कुल ६३८ फ़िल्मो के लिएं उन्होंने ३५०० से ज़्यादा गानें लिखें। इसमें से कुछ को 'फ़िल्मफ़ेअर' जैसे सम्मान भी मिले। २००८ में 'मेहबूबा' यह उन्होंने लिखें गानों की आख़री फ़िल्म प्रदर्शित हुई, जिसका संगीत इस्माइल दरबार ने किया था।
उससे पहले ही २००२ में उन्होंने इस जहाँ को अलविदा किया था। जैसे वो जानते थे आख़री फिल्म का यह गाना लिखते "अच्छा तो मैं अब चलता हूँ.."
बख्शी साहब को यह सुमनांजलि!!
- मनोज कुलकर्णी