Tuesday 24 November 2020

मशहूर फ़िल्म लेखक सलीम ख़ान..८५!

बॉलीवुड के मशहूर लेखक सलीम ख़ान साहब!

अपने बॉलीवुड के मशहूर लेखक सलीम ख़ान साहब की आज ८५ वी सालगिरह!

'तीसरी मंज़िल' (१९६६) फ़िल्म के
गाने में ड्रम बजाते सलीम ख़ान!


हैंडसम सलीम ख़ान जी ने शुरूआती दौर में कुछ फिल्मों में अभिनय भी किया। इसमें नासिर हुसैन की 'तीसरी मंज़िल' (१९६६) इस शम्मी कपूर हीरो वाली फ़िल्म में "ओ हसीना जुल्फों वाली.." गाने में वे ड्रम बजाते नज़र आए।

बाद में उन्होंने पटकथा लेखन पर तवज्जोह दिया और लेखक जावेद अख़्तर के साथ अपनी जोड़ी बनाई। फिर इन्होने कई हिट फ़िल्में दी और लेखकों को स्टेटस, ग्लैमर दिया। उन्होंने लिखी 'ज़ंजीर' (१९७३) इस प्रकाश मेहरा की फ़िल्म से अमिताभ बच्चन की 'एंग्री यंग मैन' की इमेज बनी और उसको सफलता मिली।

लेखक जोड़ीदार जावेद अख़्तर और सुपरस्टार अमिताभ बच्चन के साथ सलीम ख़ान!
 
उन्होंने लिखी रमेश सिप्पी की मल्टिस्टार्रर ब्लॉकबस्टर फ़िल्म 'शोले' (१९७५) तो माइलस्टोन हो गई। बाद में 'दीवार' (१९७५) और 'त्रिशूल' (१९७८) जैसी कई कामयाब फ़िल्में इस जोड़ी की कलम से आयी। अन्याय के विरूद्ध आँखों में अंगार लिए खड़ा रहनेवाला उनका नायक बहुत सफल रहा और अमिताभ बच्चन इससे सुपरस्टार हुए।

अपने बेटे हीरो सलमान ख़ान के साथ लेखक सलीम ख़ान!

कुछ साल बाद महेश भट्ट की फ़िल्म 'नाम' (१९८६) से सलीम ख़ान अलग से अकेले फ़िल्म लिखने लगे। संजय दत्त को एक नयी पहचान देने वाली यह फ़िल्म अच्छी चली और वे अपने इरादे में सफल हुए। बाद में.. अपने बेटे सलमान ख़ान हीरो वाली 'पत्थर के फूल' (१९९१) और 'मझधार' (१९९६) जैसी सफल फ़िल्मे उन्होंने ही लिखी।

सलीम ख़ान साहब को कुछ अवार्ड्स के साथ 'लाइफ टाइम अचीवमेंट सम्मान' प्राप्त हुआ!

उन्हें सालगिरह मुबारक़!!


- मनोज कुलकर्णी

 

Thursday 19 November 2020


आप प्रियदर्शिनी थी
आप रणरागिनी थी
हमारे हिन्दोस्ताँ की
आन-बान-शान थी!

- मनोज 'मानस रूमानी'


हमारे धर्मनिरपेक्ष भारत की पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा जी गाँधी को उनके १०३ वे जनमदिन पर सुमनांजलि!!

- मनोज कुलकर्णी

 

Saturday 14 November 2020

इंसानियत, प्यार और तरक्की का
दिया दिखाया चाचा नेहरूजी ने..
बच्चों, चलों उनकी राह पर चलें
हमारे भारत को महान बनाये!"

- मनोज 'मानस रूमानी'

हमारे भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू साहब को १३१ वे जनमदिन पर सलाम!
यह 'बाल दिन' के रूप में भी मनाया जाता हैं! तो बच्चों को प्यार भरी शुभकामनाएं!!

- मनोज कुलकर्णी

 

Friday 13 November 2020

अंदाज़-ए-रफ़ी गातें..!

ख़ालिद बैग़.. मोहम्मद रफ़ी साहब की आवाज़ में गाते!

सुखद बात का पता चला की अपने अज़ीज़ गायक मोहम्मद रफ़ी जी की आवाज़ में गानेवाले पाकिस्तानी सिंगर है..ख़ालिद बैग़! हाल ही में यु ट्यूब पर उनके पर्फोर्मन्सेस के कुछ वीडिओज़ देखनें में आएं।

रफ़ीसाहब की आवाज़ में
गाए अपने अनवर हुसैन
!
हालांकि रफ़ी साहब फिर नहीं हो सकते। वो आसमान से अपनी आवाज़ लेकर आए थे! लेकिन उनकी आवाज़-गायकी के नज़दीक जाने की कुछ हद तक कामयाब कोशिश अपने हिन्दोस्ताँ में भी हुई है। वैसे यह तो फ़िल्मों में उनकी आवाज़ की कमी भरने की बात थी! 

जैसे की "मोहब्बत अब तिज़ारत बन गयी है.." ('अर्पण') गानेवाले अनवर हुसैन हो, या "मुबारक हो तुम सबको.." ('मर्द) गानेवाले शब्बीर कुमार; या फिर "तू मुझे कबूल.." ('खुदा गवाह') गानेवाले मोहम्मद अज़ीज़!

रफ़ीसाहब की आवाज़ में
गाए अपने शब्बीर कुमार!
ख़ैर, तो पाकिस्तान में भी यह कोशिश अच्छी रंग लायी लगा, जब ख़ालिद बैग़ जी ने गायें रफ़ीसाहब के कुछ गानें यहाँ यु ट्यूब पर सुनें! उनके फेसबुक पेज से मिली जानकारी के अनुसार उन्होंने संगीत की बाकायदा तालीम हासिल की है। 

२००६ में 'रॉयल कॉलेज ऑफ़ लंदन' से 'म्युज़िकोलोजी' में ख़ालिद बैग़ जी ने डिग्री प्राप्त की और २०१० में पाकिस्तान में ही संगीत शास्त्र में एम्.ए. किया। फिर उन्होंने वहां टेलीविज़न शोज में अपने गाने के परफॉर्मन्स सादर किए और बाद में विदेशों में भी वे प्रोग्राम्स करते रहे! 

रफ़ीसाहब की आवाज़ में गा कर
गए अपने मोहम्मद अज़ीज़!
यु ट्यूब पर 'आठवां सूर' विडिओ इंटरव्यू में ख़ालिद बैग़ जी ने बयां किया है की 'वे मोहम्मद रफ़ी जी की आवाज़ से मुतासिर हुए और उस अंदाज़ में गाना पसंद किया'! "मैं रफ़ी साहब को ही गाता हूँ और उसी वजह से मेरी शोहरत है!" ऐसा भी उन्होंने इसमें कहाँ है। वैसे उन्होंने वहां इक़बाल जैसे मशहूर शायरों के कलाम भी गाएं है। वे यहाँ बम्बई आकर रफ़ी साहब के घर और क़ब्र पर भी गएँ!

पाकिस्तानी गायक ख़ालिद बैग़!
 

"तुम बिन जाऊ कहाँ के दुनियां में आके कुछ न फिर चाहा.." जैसे ख़ालिद बैग़ जी ने गाएं रफ़ी जी के गानों से ही उनकी इस आवाज़ से मोहब्बत बयां होती है!

रफ़ीसाहब को सलाम और बैग़जी को उनकी आवाज़ में गाने के लिए मुबारक़बाद!

- मनोज कुलकर्णी

Thursday 12 November 2020

जबरदस्त अदाकार अमजद ख़ान!

सत्यजीत राय की फ़िल्म 'शतरंज के खिलाड़ी' (१९७७) में अमजद ख़ान!

"कितने आदमी थे.?"
डायलॉग सुनते ही सामने आता है 'शोले' का गब्बर सिंह याने अमजद ख़ान!

रमेश सिप्पी की फ़िल्म 'शोले' (१९७५) में गब्बर अमजद ख़ान!
वही उसकी पहचान बनी! लेकिन वो एक जबरदस्त कलाकार था जिसने सिनेमा से पहले रंगमंच पर दमदार किरदार साकार किए थे।

भारतीय सिनेमा के एक दिग्गज कलाकार जयंत जी का यह साहबजादा था। १९५७ में 'अब दिल्ली दूर नहीं' में बतौर बालकलाकार अमजद परदे पर दिखा। फिर १९७३ में चेतन आनंद की 'हिंदुस्तान की कसम' में वो निगेटिव रोल में था। उसने जानेमाने फ़िल्मकार के. आसिफ को उनकी आखरी फिल्म 'लव एंड गॉड' के लिए असिस्ट भी किया।

संजीव कुमार और रमेश सिप्पी के साथ 'शोले' (१९७५) की शूटिंग में अमजद ख़ान!
लेकिन अमजद ख़ान को सिनेमा में पहचान मिली रमेश सिप्पी की लीजेंडरी फ़िल्म 'शोले' (१९७५) से। इसके लेखक सलीम ख़ान ने उसे गब्बर सिंह के किरदार के लिए चुना।..और चम्बल का वह कुप्रसिद्ध लहज़ा पूरी तरह से उसने किरदार में दिखाया! इसमें संजीव कुमार जैसे मंजे हुए कलाकार के सामने उसका परफॉर्मन्स दमदार रहा!

'याराना' (१९८१) फ़िल्म में अमिताभ बच्चन और अमजद ख़ान!
पहले के लीजेंड अजित जैसी पॉपुलैरिटी अमजद ख़ान ने हासिल की। बाद में सभी टॉप के नायकों के सामने वो ही विलन बनके आया। इसमें धर्मेंद्र ('चरस' में), अमिताभ बच्चन ('मुकद्दर का सिकंदर' में) और विनोद खन्ना ('इंकार' में) की कामयाब फ़िल्में थी। लेकिन बाद में उसने अपने किरदारों को अलग कुछ कॉमेडी अंदाज में ढाला, जैसे की फ़िरोज़ ख़ान की 'क़ुर्बानी' (१९८०) का इंस्पेक्टर और 'सत्ते पे सत्ता' (१९८२) का विलन! 'माँ कसम' (१९८५) के लिए तो उसे 'बेस्ट कॉमेडियन' का अवार्ड भी मिला!

कुछ अच्छे भले किरदार भी अमजद ख़ान ने साकार किए जैसे की १९८० में आयी 'हम से बढ़कर कौन' का भोलाराम और 'दादा' का इंटेंस रोल जिसके लिए उसने पुरस्कार जीता! बाद में 'याराना' (१९८१) में तो वो अमिताभ बच्चन का दिलदार दोस्त था। इसके लिए भी उसे अवार्ड भी मिला।

शशी कपूर की फ़िल्म 'उत्सव' (१९८४) में वात्सायन बने अमजद ख़ान!
दरमियान अमजद ख़ान के कुछ हटके किरदार निभाए। इसमें उसे चुना श्रेष्ठ फ़िल्मकार सत्यजीत राय ने 'शतरंज के खिलाड़ी' (१९७७) इस उनकी एकमात्र उर्दू फ़िल्म के लिए। इसमें नवाब वाजिद अली शाह का किरदार उसने बख़ूबी साकार किया। तो शशी कपूर की फ़िल्म 'उत्सव' (१९८४) में उसने 'कामसूत्र' लिखनेवाले वात्सायन की व्यक्तिरेखा की।

आख़िर दो फ़िल्में अमजद ख़ान ने निर्देशित भी की, इसमें 'अमीर आदमी, ग़रीब आदमी' (१९८५) कामयाब रही।..'एक्टर्स गिल्ड एसोसिएशन' के वे अध्यक्ष भी रहे!

दुर्भाग्य से बहोत जल्द वे इस दुनिया से रुख़सत हुए।  
आज उनका ८० वा जनमदिन..इसलिए यह याद!!

- मनोज कुलकर्णी


 

Monday 9 November 2020


"न किसी की आँख का नूर हूँ
न किसी के दिल का क़रार हूँ
जो किसी के काम न आ सके
मैं वो एक मुश्त-ए-ग़ुबार हूँ!"

'लाल किला' (१९६०) फ़िल्म में यह नज़्म मोहम्मद रफ़ी साहब ने दर्दभरी आवाज़ में गायी थी!
इसे अब ६० साल हो गए। लेकिन जब भी सुनता हूँ आँखें नम होती है!

बहादुर शाह जफ़र साहब की कलम से आयी यह शायरी!
उन्हें यह जहाँ छोड़कर डेढ़सौ से ज्यादा साल हो गए!
परसो उनका स्मृतिदिन था!

उन्हें सलाम!!

- मनोज कुलकर्णी

 

Sunday 8 November 2020

अमेरिका में भारतीय मूल की उपराष्ट्रपति होती है तो गर्व महसूस करते है!
यहाँ इटली मूल की भारतीय प्रधानमंत्री क्यूँ नहीं चलती थी?

- मनोज कुलकर्णी


ट्रम्प को शिकस्त देते अमेरिका के ४६ वे राष्ट्रपति हुए डेमोक्रेटिक पार्टी के जो बाइडेन और उपराष्ट्रपति बनी भारतीय मूल की कमला हैरिस का हार्दिक अभिनंदन!!

- मनोज कुलकर्णी

Thursday 5 November 2020

बी.आर.चोपड़ा और 'नया दौर'!

रंगीन 'नया दौर' के २००७ में प्रदर्शन समय बी.आर.चोपड़ाजी के साथ वैजयंतीमाला, रवि चोपड़ा और दिलीपकुमार!


अपने भारतीय सिनेमा के दिग्गज फ़िल्मकार बी. आर. चोपड़ा जी का आज १२ वा स्मृतिदिन।

'बीआर फ़िल्म्स' के 'नया दौर' (१९५७) का पोस्टर!

इस वक्त याद आया उनका शायद आखरी बार कैमरा के सामने आना और वह था उनकी ही क्लासिक 'नया दौर' के रंगीन प्रदर्शन पर!

१९५७ में 'बीआर फ़िल्म्स' द्वारा मूल ब्लैक एंड व्हाइट में निर्माण हुई थी 'नया दौर'। मशीन युग में आदमी की अहमियत को उजाग़र करनेवाली इस फ़िल्म को लिखा था.. अख़्तर मिर्ज़ा और क़ामिल रशीद इन्होंने! गांव के गरीब टाँगेवालें और जमींदार की मोटर के बीच की रेस इसमें उल्लेखनीय रही। "झगड़ा सिर्फ मशीन और आदमी का है बस!" यह इसका तडफदार नायक दिलीप कुमार का संवाद अब भी याद हैं! अजित, जीवन, जॉनी वॉकर, चाँद उस्मानी और वैजयंतीमाला ने इसमें उसके साथ अहम भूमिकाएं निभाई थी।

'नया दौर' (१९५७) फ़िल्म के "मांग के साथ तुम्हारा.."
गाने में दिलीपकुमार और वैजयंतीमाला!

 


हालांकि, इस फ़िल्म में पहले मधुबाला ने बतौर नायिका काम शुरू किया था; लेकिन उसके वालिद अताउल्लाह ख़ान की वजह से उसे इसमें से बाहर आना पड़ा। कहा गया है की तब दिलीपकुमार-मधुबाला रिलेशनशिप में थे और यह बात ख़ान साहब को ग़वारा नहीं थी! तब चोपड़ाजी ने नायिका के रूप में लिया वैजयंतीमाला को, जिन्होंने पहले 'देवदास' (१९५५) फ़िल्म में दिलीपकुमार का अच्छा साथ दिया था। यह जोड़ी हिट हो गई और उनका गाना "मांग के साथ तुम्हारा.." आज भी लुभावना लगता है। 

'नया दौर' (१९५७) के "ये देश है वीर जवानों का.."
गाने में दिलीपकुमार और अजित!
साहिर लुधियानवी ने लिखें इसके गीत संगीतबद्ध किये थें ओ. पी. नय्यर ने, जिन्हें मोहम्मद रफ़ी और आशा भोसले ने गाया था। इसमें "उड़े जब जब जुल्फें तेरी.." जैसा रूमानी तो "ये देश है वीर जवानों का..",  "साथी हाथ बढ़ाना.." ये राष्ट्रप्रेम और सेवाकार्य को उत्तेजन देनेवालें गीत थें।

'नया दौर' फ़िल्म बहुत कामयाब रही और दिलीपकुमार को 'सर्वोत्कृष्ट अभिनेता' का पुरस्कार भी मिला। इसे पचास साल पुरे होने के समय २००७ में बी.आर. और पुत्र रवि चोपड़ा जी ने इसे रंगीन बनाकर प्रदर्शित किया।

चोपड़ाजी और उनकी इस लैंडमार्क फ़िल्म को आदरांजली!!

- मनोज कुलकर्णी