"पूरा खेल अभी जीवन का तूने कहाँ है खेला
चल अकेला, चल अकेला, चल अकेला..
तेरा मेला पीछे छूटा राही चल अकेला..s"
दिल को छूने वाली आवाज़ के मुकेश जी ने गाएं यथार्थवादी गीतों में से मेरा यह एक पसंदीदा गीत..हाल ही में शुरू हुई उनकी जन्मशताब्दी पर मन मे गूँजा!
विश्व विख्यात कवि रबीन्द्रनाथ टैगोर जी के मूल "जोदी तोर डाक सुने केउ ना आसे तोबे एकला चलो रे..s" इस मशहूर बंगाली गीत से प्रेरित कवि प्रदीप जी का यह गीत!
हमेशा उदास मन को जीवनपथ पर चलने की प्रेरणा देता हैं!
मुकेश साहब को इसी से याद करके सुमनांजलि!!
- मनोज कुलकर्णी
मेरे इस ब्लॉग पर हमारे भारतीय तथा पूरे विश्व सिनेमा की गतिविधियों पर मैं हिंदी में लिख रहा हूँ! इसमें फ़िल्मी हस्तियों पर मेरे लेख तथा नई फिल्मों की समीक्षाएं भी शामिल है! - मनोज कुलकर्णी (पुणे).
Saturday 29 July 2023
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