वह नफ़ासत, नज़ाकत..शायराना इज़हार-ए-इश्क़..
हमेशा से ही रहा हैं मेरा..तसव्वुर-ए-शायराना इश्क़!
- मनोज 'मानस रूमानी'
[इसी अंदाज़ की एच.एस. रवैल जी की 'मेरे महबूब' (१९६३) इस मेरी पसंदीदा फ़िल्म की ६० वी वर्षगांठ पर यह लिखा हैं। इसमें जुबिली स्टार राजेंद्र कुमार और ख़ूबसूरत साधना ने नज़ाक़त से शायराना इश्क़ साकार किया हैं। शकील बदायुनी जी की लाजवाब शायरी नौशाद जी के संगीत में मेरे अज़ीज़ मोहम्मद रफ़ी जी तथा लता मंगेशकर जी ने गायी हैं! यह शायराना अंदाज़-ए-इश्क़ मुझे हमेशा लुभाता रहां हैं!]
- मनोज कुलकर्णी