'कागज़ के फ़ूल' (१९५९) फिल्म का कैफ़ीसाहब ने लिखा और रफ़ीजी ने गाया यह गाना।
इसे सर्जनशील जीवन से हारे फ़िल्मकार के रूप में गुरुदत्तजी ने तड़पते हुए परदेपर साकार किया था..जो दिल को हिला कर रख देता हैं।
गायिका गीता दत्त और फ़िल्मकार गुरुदत्त के बीच संगीतकार एस. डी. बर्मन (पीछे आर.डी. बर्मन). |
नतीजा यह हुआ की फिल्म बनाते समय गुरुदत्त और उनके पारिवारिक जीवन पर भी उसका असर हुआ। फिर फिल्म बनने के बाद गुरुदत्त के निजी जीवन से उसे देखा गया.. और फिल्म ने अपेक्षित सफलता भी हासिल नहीं की।
इसके बाद बर्मनदा तो चले गए ही थे..और पारिवारिक स्तर पर बिखरने के बाद गुरुदत्त भी आगे अपनी कोई फिल्म निर्देशित नहीं कर सकें।
- मनोज कुलकर्णी
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