Tuesday 14 April 2020



"अपनी कहानी छोड़ जा.."
'दो भीगा ज़मीन' (१९५३) फ़िल्मके उस गाने के दृश्य में बलराज साहनी!
"अपनी कहानी छोड़ जा..
कुछ तो निशानी छोड़ जा!
कौन कहे इस ओर..
तू फिर आए न आए..!" 

अपने भारतीय सिनेमाके महान कलाकारों में से बलराज साहनी की प्रखर वास्तववादी भूमिका के 'दो भीगा ज़मीन' (१९५३) इस फ़िल्म में उन्हीने साकार किया हुआ यह गाना। कल उनके स्मृतिदिन पर याद आया। लगभग चार तप हो गएँ हैं..  
उन्हें यह जहाँ छोड़कर!

आजके हालातों के मद्देनज़र इसे देख सकतें हैं ऐसी समकालिनता अपनी चित्रकृति में रखनेवाले इसके दिग्गज फ़िल्मकार बिमल रॉय और ऐसा यथार्थवाद अपने काव्यकृति में रखनेवाले शैलेन्द्र..इत्तफ़ाक़ ऐसा की यह दोनों एक ही साल याने १९६६ में यह जहाँ छोड़ गएँ!

डी सिका की इतालियन फिल्म 'बाइसिकल थीव्ज़' (१९४८) का मूल दृश्य!
हालांकि अपने फ़िल्मकार बिमल रॉय पर 'इतालियन नव-वास्तववाद' का प्रभाव था! इसी वजह से उसके अग्रशील विट्टोरिओ डी सिका की इसी जॉनर की विश्वविख्यात 'बाइसिकल थीव्ज़' (१९४८) फिल्म से प्रेरित 'दो भीगा ज़मीन' का दृश्यांकन 
हुआ था! 

वैसे फ़िल्म 'दो भीगा ज़मीन' अपने महान साहित्यकार रबीन्द्रनाथ टैगोर की काव्य - कृति 'दो बीघा जोमी' से प्रेरित थी। उसपर (इसके संगीतकार) सलिल चौधरी ने कथा लिखी थी और.. हृषिकेश मुख़र्जी ने पटकथा लिखी थी जो तब सहायक निर्देशक भी थे! 

बिमल रॉय के 'दो भीगा ज़मीन' (१९५३) का फिल्म 'बाइसिकल थीव्ज़' (१९४८) जैसा दृश्य!
अपना ऋण चुका कर.. ज़मीन को बचाने के लिएं पैसे कमाने गरीब किसान गाँव से कलकत्ता आता हैं.. तब इस महानगर में रिक्शा चलाने जैसे काम करतें उसे कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता हैं ऐसी इसकी कहानी थी। इसके ज़रिये बिमलदा ने प्रखर वास्तव परदे पर लाया था।..और बलराज साहनी ने अपनी जान इसके प्रमुख किरदारमे डालकर बड़ी स्वाभाविकता से वह साकार किया था!

इस फ़िल्मने अपने हिंदी सिनेमामें यथार्थवादी दौर शुरू किया!..इसे राष्ट्रीय और आंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया। साथ ही 'कांस' और 'कार्लोवी वैरी' जैसे प्रतिष्ठित फिल्म समारोह में इसने पुरस्कार भी जीतें!

ऐसे महान कलाकारों को सलाम!!

- मनोज कुलकर्णी

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