Tuesday 14 April 2020

बिमल रॉय की फ़िल्म 'सुजाता' (१९५९) में सुनील दत्त और नूतन!
"जलतें हैं जिसके लिए..
तेरी आँखों के दियें.."

तलत की दिल छू लेनेवाली आवाज़ में मजरूहजी की यह ग़ज़ल आज याद आयी!

जो है 'सुजाता' इस नाम ही सबकुछ बयां करनेवाली अभिजात चित्रकृति से!


१९५९ में अपने जानेमाने निर्देशक बिमल रॉय ने बनायी यह फ़िल्म जाती व्यवस्थापर संवेदनशीलता से भाष्य कर गयी।

सधन उची जात का परिवार एक गरीब दलित लड़की को गोद लेता हैं और..बाद में उसी परिवार के लड़के का दिल उसपर आता है। सुबोध घोष ने लिखी इस कहानी पर नबेंदु घोष ने इसकी पटकथा लिखी थी।

इसमें अपनी बेहतरिन अभिनेत्री नूतन ने वह शीर्षक भूमिका बड़ी ही स्वाभाविकता से हृदय साकार की और अपने संवेदशील अभिनय से सुनील दत्त ने उसे अच्छा साथ दिया।

इस फिल्म को काफी सराहना मिली और अनेक पुरस्कारों के साथ राष्ट्रीय सम्मान भी प्राप्त हुआ!

हिमांशु राय की फिल्म 'अछूत कन्या' (१९३६) में देविका रानी और अशोक कुमार!
आज के दिन मुझे इसी विषय को उजागर करने - वाली दूसरी क्लासिक फिल्म याद आयी.. 
वह है 'बॉम्बे टॉकीज' की.. 'अछूत कन्या'!

इसके मालिक हिमांशु राय ने १९३६ में इस फिल्मका निर्माण किया था। इसकी कथा निरंजन पाल ने लिखी थी और फ्रैंज ओस्टेन ने इसे निर्देशित किया था।

इसमें ब्राह्मण युवक का किरदार अशोक कुमार ने किया था और दलित लड़की की शीर्षक भूमिका निभायी थी (हिमांशुजी की पत्नी) देविका रानी ने! इन दोनों ने खुद गाकर साकार किया..
"मै बन की चिड़ियाँ बन के बन बन बोलूँ रे.." गाना आज भी नज़रों के सामने हैं!

अपने भारतीय सिनेमा की इतिहास में ये दो मानदंड कही जानेवाली फ़िल्में!
इसमें और एक समानता थी की स्त्री किरदार का ही उपेक्षित भूमिकाओं के लिए चुना जाना। इससे शायद अनकही और एक वास्तवता सामने लानी होंगी!

ख़ैर, इन सामाजिक चित्रकृतियों को यह आदरांजली!!

- मनोज कुलकर्णी

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