Monday 27 April 2020

महान शास्त्रीय गायक! 

हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के दिग्गज..उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली ख़ां गाते हुए!

हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के दिग्गज उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली ख़ां को यह जहाँ छोड़कर अब पचास से भी ज्यादा साल हो गएँ!

"प्रेम जोगन बन के.." 
इस बड़े ग़ुलाम अली ख़ां साहब की सुरीली तान पर 
फिल्म 'मुग़ल-ए-आज़म' (१९६०) में प्यार का इज़हार 
करतें सलीम-अनारकली (दिलीपकुमार-मधुबाला).
लेकिन अब भी के. असिफ की क्लासिक फिल्म 'मुग़ल-ए-आज़म' (१९६०) में उन्होंने गायी "प्रेम जोगन बन के.." की तान रूमानी दिल के तार छेड़ लेती हैं! उसमें सलीम-अनारकली (दिलीपकुमार-मधुबाला) के प्यार को अभिजात तरीके से दर्शाते प्रसंग में पार्श्वभूमी पर तानसेन के लिए गाने को ख़ां साहब को आसिफजी और संगीतकार नौशादजी ने मुश्किल से मनाया था।

शागिर्द रही मशहूर गायिका नूरजहाँ के साथ  
पाकिस्तान में बड़े ग़ुलाम अली ख़ां साहब!
संगीतज्ञों के परिवार में बड़े गुलाम अली खां का आरंभ सारंगी वादक के रूप में हुआ!..बाद में वे पटियाला घराने की गायकी में उभर आए। १९१९ में 'लाहौर संगीत सम्मेलन' में बड़े ग़ुलाम अली खां पहली बार गाएं।..और फिर पूरे हिंदुस्तान में मशहूर हुए! सुरीली लोचदार आवाज़ और अभिनव शैली के बूते उन्होंने ठुमरी को नये अंदाज में पेश किया! लोकसंगीत की मिठास भी उनके आवाज में थी। उन्होंने गाये "राधेश्याम बोल.." भजन सुनकर महात्मा गांधी प्रभावित हुए थे!

हिंदुस्तान में मशहूर गायिका लता मंगेशकर के साथ 
एक संगीत कार्यक्रम में बड़े ग़ुलाम अली ख़ां साहब!
१९४७ में देश के विभाजन के बाद बड़े ग़ुलाम अली खां पाकिस्तान में उनके गांव क़सूर चले गएँ। वहां उन्होंने संगीत भी सिखाया..ग़ज़ल गायक ग़ुलाम अली उनकेही शागिर्द! बाद में १९५७ में खां साहब हिंदुस्तान लौट आए..सदा के लिए!

यहाँ १९६२ में उन्हें "पद्मभूषण" से सम्मानित किया गया। 

२३ अप्रैल, १९६८ को उनका निधन हुआ।

उन्हें यह सुमनांजली!

- मनोज कुलकर्णी.

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