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'आज़ाद' (१९५५) फ़िल्म के "कितना हसीन है मौसम.." गाने में मीना कुमारी और दिलीप कुमार! |
"आय वॉज टायर्ड बाय डूइंग ट्रैजडी!..सो आय स्टार्टेड डूइंग लाइटर रोल्स अल्सो!"
अपने भारतीय सिनेमा के अदाकारी के शहंशाह युसूफ ख़ान याने दिलीप कुमार जी ने मेरी 'चित्रसृष्टी' के लिए मुझे एक्सक्लुजिव्ह इंटरव्यू देते हुए बताया था।
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'आज़ाद' (१९५५) फ़िल्म के पोस्टर पर दिलीप कुमार, प्राण और मीना कुमारी! |
जाहिर सी बात थी 'मेला' (१९४८), 'दीदार' (१९५१), 'दाग', 'संगदिल' (१९५२) और..चोटी का 'देवदास' (१९५५) ऐसी लगातार शोकग्रस्त नायक की फ़िल्में वे करते गए। इससे उनकी 'ट्रैजडी किंग' इमेज बनी और इस का असर किरदार को पूरी तरह अपनाने वाले इस मेथड एक्टर पर होने लगा। फिर उन्हें डॉक्टर ने इस तरह के रोल्स ज़्यादा न करने की सलाह दी!इसीलिए 'देवदास' के तुरंत बाद १९५५ में दिलीप कुमार जी ने एक्शन-कॉमेडी की तरफ रुख़ किया। नतीजन साऊथ के - 'पक्षिराजा स्टूडियोज' की 'आज़ाद' इस फ़िल्म में वो एकदम अलग अंदाज़ में नज़र आए। इससे और एक ऐसा ही बदलाव सामने आया, वह था मीना कुमारी जी इसमें उनकी नायिका हुई। जैसे उन्होंने भी अपनी 'ट्रैजडी क्वीन' इमेज से छुटकारा चाहा! दोनों पहले फ़िल्म 'फुटपाथ' (१९५३) में बड़े संजीदा थे। बाद में इन दोनों ने 'कोहिनूर' (१९६०) में भी ऐसे किरदार साथ निभाएं।
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'आज़ाद' (१९५५) फ़िल्म के रूमानी प्रसंग में दिलीप कुमार और मीना कुमारी! |
बहरहाल, इस 'आज़ाद' फ़िल्म के संगीत की भी एक कहानी है। इसके निर्माता-निर्देशक एस. एम्. श्रीरामुलु नायडू को यह फ़िल्म जल्दी कंप्लीट करनी थी। तो संगीत के लिए जब वे नौशाद जी के पास गए, तब एक हफ्ते में गानें तैयार करने के लिए इन्होने उनको कहा। यह सुनकर नौशाद जी ने मना किया, क्योंकि ऐसी जल्दबाजी में उनके दर्जे का संगीत होता नहीं था। बाद में नायडू जी संगीतकार सी. रामचंद्र जी के पास गए और आख़िर में एक महीने के अंदर उन्होंने इसके नौ गाने रिकॉर्ड किएं। |
संगीतकार-गायक सी. रामचंद्र जी! |
इस 'आज़ाद' के गीत लिखें थे राजेंद्र कृष्ण जी ने, जो सारे लता मंगेशकर जी ने लाजवाब गाएं। इसमें "देखो जी बहार आयी.." और "ना बोले ना बोले.." जैसे सोलो थे और उषा मंगेशकर जी के साथ उन्होंने गाया "अपलम चपलम.." यह हिट! इस फ़िल्म में एक डुएट था "कितना हसीन है मौसम.." जिसे उनके साथ तलत महमूद को गाना था; लेकिन उनके वालिद की तबियत बिगड़ जाने पर वे अचानक लखनऊ चले गए। वो दौर ऐसा था की दिलीप कुमार के लिए तलत जी और रफ़ी साहब ही गातें थे। तब समय की कमी के कारन संगीतकार सी. रामचंद्र जी ने खुद (चितलकर नाम से) वो गाना लता जी के साथ गाया। वह इतना तलत जी के अंदाज़ में था की दिलीप कुमार जी को भी सुनके ताज्जुब हुआ!ख़ैर, इस 'आज़ाद' की बदौलत यूसुफ़ साहब को ट्रैजडी से कुछ तो राहत मिली!!
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