वो परदे पर की परिचारिकाएं!!
'दिल अपना और प्रीत पराई' (१९६०) फ़िल्म में मीना कुमारी! |
१९६० में कमाल अमरोही निर्मित और किशोर साहू निर्देशित 'दिल अपना और प्रीत पराई' में मीना कुमारी ने नर्स की भूमिका की थी। अस्पताल में सर्जन रहे राज कुमार का और उसका मनोमन प्यार होता है, लेकिन वे ज़ाहिर नहीं करतें। बाद में हालात कुछ ऐसे होते है की राज कुमार की शादी नादिरा से होती है। तब मीना कुमारी उनसे दूर होकर दूसरे अस्पताल में अपने परिचारिका के काम में ध्यान देती है। हालांकि आखिर में वे मिलते हैं। लता मंगेशकर ने गाए शैलेन्द्र के इसके शीर्षक गीत और "अजीब दास्ताँ है ये.." तथा उसमें मीनाजी का गहरा भाव प्रदर्शन कमाल का था!
'ख़ामोशी' (१९७०) फ़िल्म में वहीदा रहमान! |
फिर १९७० में (संगीतकार-गायक) हेमंत कुमार निर्मित और असित सेन निर्देशित 'ख़ामोशी' में वहीदा रहमान का नर्स का किरदार यादगार रहा। आशुतोष मुख़र्जी की 'नर्स मित्रा' इस लघु कथा पर वह थी। पहले इस पर बांग्ला फ़िल्म 'दीप ज्वेले जाए' (१९५९) बनी थी, जिसमें सुचित्रा सेन ने वह किरदार बख़ूबी निभाया था। (राजेश खन्ना अभिनीत) मानसिक रूप से बीमार लेखक-कवी की देखभाल करते हुए, अपना निजी दर्द 'ख़ामोशी' से अलग रखकर, करुणा और प्यार से उसे ठीक करनेवाली वो परिचारिका थी। गुलज़ार के गीत और हेमंतदा के संगीत के साथ कमल बोस के छायांकन ने इसमें योगदान दिया!
'दिल एक मंदिर' (१९६३) के "जूही की कली मेरी लाडली.." गाने में बेबी पद्मिनी और मीना कुमारी! |
वैसे श्रीधर की 'दिल एक मंदिर' (१९६३) भी अस्पताल डॉक्टर-नर्स का माहौल की बड़ी संजीदा फ़िल्म थी। इसमें मीना कुमारी का किरदार अजीब उलझन में पड़ा हुआ है, जिसमें उसके कैंसर के मरीज़ पति (राज - कुमार) को ठीक करने की जिम्मेदारी उसके पूर्व प्रेमी तथा डॉक्टर (राजेंद्र कुमार) पर है। हालांकि यह राजेंद्र कुमार के लिए भी बड़ी जोखिमवाला होता है और वह इस पेशंट को अपनी जान की परवाह न करते ठीक करता है। इसमें अस्पताल में एक प्यारी बच्ची भी ऐसी मरीज होती है, जिससे मीना कुमारी का रिश्ता बनता है। उसके जनमदिन पर वहां उसने साकार किया "जूही की कली मेरी लाडली.." यह (सुमन कल्याणपुर ने गाया) गाना हृदयस्पर्शी रहा!
कुछ और फ़िल्मों में अभिनेत्रियों ने परिचारिका की अजीब हालातों से गुज़रती व्यक्तिरेखाएं निभाई। जैसे की 'अपराध' (१९६९) इस मराठी फ़िल्म में सीमा ने निभाया हुआ अलग ही किस्म का किरदार!
ख़ैर, आज के गंभीर हालात में वास्तव में अपनी परिचारिकाएं करती काम अनमोल है।..उन्हें सलाम!!
- मनोज कुलकर्णी
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