श्रेष्ठ टैगोर जी की कविकल्पना!
"मैं दुनिया भर में घूमता रहा; लेकिन मेरे ही बगीचे में पेड़ के पत्ते पर पड़े पानी की बून्द में समाया जहाँ देखना भूल गया!"
ऐसा आशय अपने 'नोबेल' प्राप्त विश्वविख्यात साहित्यिक गुरु रबिन्द्रनाथ टैगोर के एक बंगाली - काव्यकृति में व्यक्त हुआ!
आज उनकी ८० वी पुण्यतिथि पर यह याद आया।
उन्हें विनम्र प्रणाम!
- मनोज कुलकर्णी
No comments:
Post a Comment