शायरा 'महज़बीं' मीना कुमारी जी!
महज़बीं बानो याने अपने भारतीय सिनेमा की जानीमानी अभिनेत्री मीना कुमारी जी अच्छी शायरा भी थी।..यह उन्ही का लिखा नग़्मा..
'पाकीज़ा' (१९७२) फ़िल्म में मीना कुमारी जी! |
"चाँद तन्हा है आसमान तन्हा
दिल मिला है कहाँ कहाँ तन्हा
बुझ गई आस छुप गया तारा
थर-थराता रहा धुंआ तन्हा
ज़िंदगी क्या इसी को कहते हैं
जिस्म तन्हा है और जान तन्हा
हमसफ़र कोई गर मिले भी कहीं
दोनों चलते रहे तन्हा तन्हा
जलती बुझती सी रौशनी के परे
सिमटा सिमटा सा एक मकान तन्हा
राह देखा करेगा सदियों तक
छोड़ जायेंगे ये जहां तन्हा!"
आज उनके ८८ वे जनमदिन पर फिर से याद आया..जो मुझे बेहद पसंद है।
उन्हें सलाम!
- मनोज कुलकर्णी
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