शायर बहादुर शाह जफ़र!
"लगता नहीं है जी मेरा उजड़े दयार में..
किस की बनी है आलम-ए-नापायदार में!"
भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के एक अग्रणी तथा कवि..आखरी मुग़ल बादशाह बहादुर शाह जफ़र जी के कलम से आयी शायरी!..कल उनका स्मृतिदिन था!
उनकी 'लाल किला' (१९६०) फ़िल्म में रफीसाहब ने दर्दभरी आवाज़ में गायी यह नज़्म बड़ी मशहूर हैं..
"न किसी की आँख का नूर हूँ
न किसी के दिल का क़रार हूँ
जो किसी के काम न आ सके
मैं वो एक मुश्त-ए-ग़ुबार हूँ!"
उन्हें सलाम!!
- मनोज कुलकर्णी
- मनोज कुलकर्णी
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