"न किसी की आँख का नूर हूँ..
न किसी के दिल का क़रार हूँ..!"
यह मशहूर ग़ज़ल हो या,
"लगता नहीं है जी मेरा उजड़े दयार में..
किस की बनी है आलम-ए-नापायदार में!"
यह लिखनेवले आख़िरी मुग़ल बादशाह और उर्दू शायर बहादुर शाह ज़फ़र जी का आज १६० वा स्मृतिदिन!
अपने भारत के पहले याने १८५७ के स्वतंत्रता संग्राम के वे एक प्रमुख थे!!
उन्हें सलाम!!
- मनोज कुलकर्णी
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