रूमानी 'खुशबू' की खूबसूरत शायरा..परवीन शाकिर!
दो घड़ी की चाहत में लड़कियाँ नहीं खुलतीं"
ऐसा रूमानी लिखनेवाली वहां पाकिस्तान की मुमताज़ शायरा थी परवीन शाकिर.. जिनका का आज जनमदिन!
"वो तो ख़ुश-बू है हवाओं में बिखर जाएगा
मसअला फूल का है..फूल किधर जाएगा"
ऐसा मोहब्बत के जज़्बे को उन्होंने कोमलता से अपनी स्त्रीवाची शायरी में बयां किया था।
रिवायतों से आज़ाद, आधुनिक संवेदना बयां करनेवाली उनकी 'सदबर्ग', 'ख़ुद-कलामी', 'आँखों में सपना', 'माह-ए-तमाम' और 'ख़ुशबू' ऐसी किताबें मशहूर हुई।
दिलों के बंद दरीचे खुले, हवा आई"
ऐसी यहाँ हुए मुशायरे में उनकी शिरकत देखकर उनकी मक़बूलियत सरहद के दोनों तरफ थी इसका अहसास हुआ!
अपनी मुख़्तसर ज़िंदगी में उन्होंने रूमानी शायरी को चार चाँद लगा दिएँ!
उनकी याद में उन्ही का शेर..
"किस मक़्तल से गुज़रा होगा
इतना सहमा सहमा चाँद!"
उन्हें मेरी सुमनांजलि!!
- मनोज कुलकर्णी
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